देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लेते हुए राज्य के मदरसा बोर्ड को भंग करने का निर्णय लिया है। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल...
देहरादून। उत्तराखंड सरकार ने एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लेते हुए राज्य के मदरसा बोर्ड को भंग करने का निर्णय लिया है। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेवानिवृत्त) ने सरकार द्वारा पारित “उत्तराखंड मदरसा शिक्षा (उन्मूलन) विधेयक” को मंजूरी दे दी है। इस कदम के बाद राज्य में मदरसा बोर्ड का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, जिससे धार्मिक शिक्षा के ढांचे और मदरसा प्रबंधन प्रणाली में बड़ा बदलाव आने की संभावना है।
पृष्ठभूमि: लंबे समय से चल रही थी चर्चा
उत्तराखंड में मदरसा बोर्ड की स्थापना वर्ष 2009 में की गई थी, जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों को आधुनिक और धार्मिक शिक्षा का संयोजन प्रदान करना था। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में बोर्ड की कार्यप्रणाली, फंडिंग और पारदर्शिता को लेकर सवाल उठते रहे।
राज्य सरकार ने 2023 के अंत में संकेत दिया था कि मदरसा शिक्षा व्यवस्था को “सुधारित या समाप्त” करने पर विचार किया जा रहा है, ताकि “शिक्षा का एक समान मानक (Uniform Education System)” लागू किया जा सके।
राज्यपाल की मंजूरी के बाद अब क्या बदलेगा?
राज्यपाल की मंजूरी के बाद अब यह कानून प्रभावी हो गया है। इसके तहत मदरसा बोर्ड की सभी प्रशासनिक शक्तियाँ समाप्त हो जाएंगी, और उसके अधीन चल रहे संस्थानों की निगरानी अब शिक्षा विभाग के अंतर्गत लाई जाएगी।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया,
“राज्य सरकार का उद्देश्य धार्मिक शिक्षा को बंद करना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण और समान अवसरों पर आधारित शिक्षा मिले।”
इसके अलावा, मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षकों और स्टाफ के पुनर्विनियोजन (redeployment) की प्रक्रिया भी जल्द शुरू की जाएगी।
विपक्ष और समुदायों की प्रतिक्रिया
इस निर्णय पर राजनीतिक और सामाजिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। विपक्षी दलों ने इस फैसले को “राजनीतिक एजेंडा से प्रेरित” बताया है। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, “सरकार को सुधार के नाम पर संस्थानों को बंद करने के बजाय उनके आधुनिकीकरण की दिशा में काम करना चाहिए था।”
वहीं, कुछ मुस्लिम संगठनों ने भी चिंता व्यक्त की है कि यह निर्णय “शिक्षा में विविधता और धार्मिक स्वतंत्रता” के सिद्धांतों को प्रभावित कर सकता है।
हालांकि, शिक्षा नीति विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह कदम पारदर्शिता और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के उद्देश्य से उठाया गया है, तो यह राज्य के शिक्षा तंत्र को एकजुट और मजबूत कर सकता है।
विशेषज्ञों का विश्लेषण: शिक्षा का समान अवसर या सांस्कृतिक प्रभाव?
शिक्षा विशेषज्ञ डॉ. अजय रावत के अनुसार,
“यदि मदरसा बोर्ड को समाप्त करने के साथ सरकार वैकल्पिक व्यवस्था और संसाधन मुहैया कराती है, तो यह कदम सकारात्मक साबित हो सकता है। लेकिन यदि केवल संरचना को खत्म कर दिया गया और विकल्प नहीं दिए गए, तो इससे कई छात्र शिक्षा प्रणाली से बाहर हो सकते हैं।”
वहीं, सामाजिक विश्लेषक रुखसाना अली का कहना है कि,
“मदरसों ने दशकों से पिछड़े तबके के बच्चों को शिक्षा से जोड़े रखा है। ऐसे में उनके लिए वैकल्पिक स्कूलों और छात्रवृत्तियों की ठोस नीति बनाना अनिवार्य है।”
आगे की राह: नई शिक्षा नीति और समावेशी दृष्टिकोण
राज्य सरकार ने संकेत दिया है कि मदरसों के स्थान पर अब ‘समावेशी शिक्षा मॉडल’ अपनाया जाएगा, जिसमें आधुनिक विषयों के साथ-साथ नैतिक शिक्षा और सांस्कृतिक अध्ययन भी शामिल किए जाएंगे।
शिक्षा मंत्री ने कहा,
“हम किसी धर्म विशेष की शिक्षा को निशाना नहीं बना रहे, बल्कि यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि हर बच्चा मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली से जुड़े।”
निष्कर्ष: एक निर्णय, कई सवाल
मदरसा बोर्ड का अंत उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यह कदम जहां “एकरूप शिक्षा व्यवस्था” की दिशा में अग्रसर प्रतीत होता है, वहीं यह “संवेदनशील सामाजिक संतुलन” की परीक्षा भी लेगा।
अब यह सरकार और समाज — दोनों की ज़िम्मेदारी है कि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे, और धार्मिक स्वतंत्रता के साथ आधुनिकता का संतुलन कायम रहे।
क्या आप चाहेंगे कि मैं इस लेख में एक “टाइमलाइन सेक्शन” (मदरसा बोर्ड के गठन से उन्मूलन तक की प्रमुख घटनाओं की संक्षिप्त सूची) भी जोड़ दूँ ताकि यह प्रकाशन के लिए और प्रासंगिक बने?