देहरादून। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में मानव-वन्यजीव संघर्ष एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। हाल ही में एक ऐसा दृश्य सामने आया जिसने न केवल...
देहरादून। उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में मानव-वन्यजीव संघर्ष एक गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। हाल ही में एक ऐसा दृश्य सामने आया जिसने न केवल स्थानीय प्रशासन बल्कि पूरे समाज को चिंता में डाल दिया। पहाड़ी गाँवों के छात्र-छात्राएं रोज़ाना स्कूल जाते समय अपने साथ डंडे लेकर निकलते हैं, क्योंकि रास्ते में अक्सर गुलदार (तेंदुआ) दिख जाता है। यह स्थिति शिक्षा और सुरक्षा दोनों पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।
पहाड़ के बच्चों का ‘डर भरा सफर’
गाँव के स्कूल जाने वाले बच्चे सुबह-सुबह जब निकलते हैं तो उनकी झोली में किताबों के साथ एक डंडा भी जरूर होता है। डंडा उनके लिए पढ़ाई का औज़ार नहीं, बल्कि सुरक्षा का साधन बन चुका है।
स्थानीय निवासी कहते हैं कि गुलदार अक्सर आबादी वाले इलाकों के आसपास घूमता दिखाई देता है। बच्चों का कहना है कि बिना डंडे के स्कूल जाना उन्हें असुरक्षित महसूस कराता है।
ग्रामीणों की पीड़ा
गाँव के एक अभिभावक ने बताया, “हम बच्चों को अकेले भेजने से डरते हैं। कई बार गुलदार खेतों के पास दिख चुका है। हम चाहते हैं कि प्रशासन उनकी सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए।”
ग्रामीणों का कहना है कि जंगली जानवरों का आतंक बढ़ने से खेती और पशुपालन पर भी असर पड़ा है। वे प्रशासन से गश्त बढ़ाने और पिंजरे लगाने जैसी पहल की मांग कर रहे हैं।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
वन विभाग का कहना है कि टीमों को अलर्ट पर रखा गया है और क्षेत्र में नियमित गश्त की जा रही है। एक अधिकारी ने बताया, “हमने कैमरा ट्रैप लगाए हैं और गुलदार की गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। बच्चों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है।”
हालांकि ग्रामीणों का मानना है कि केवल निगरानी से समस्या हल नहीं होगी। उन्हें लगता है कि ज्यादा सक्रिय उपाय जैसे पिंजरे लगाना, रोशनी की व्यवस्था करना और असुरक्षित इलाकों में सुरक्षा गार्ड तैनात करना आवश्यक है।
शिक्षा पर असर
इस डर का सीधा असर बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है। कई बार बच्चे स्कूल जाने से कतराने लगते हैं या देर से पहुँचते हैं। शिक्षकों ने भी चिंता जताई है कि अगर यह स्थिति बनी रही तो शिक्षा पर गहरा असर पड़ेगा।
एक स्थानीय शिक्षक ने कहा, “गाँव के बच्चे वैसे ही मुश्किल परिस्थितियों में पढ़ाई करते हैं। अगर डर भी पढ़ाई में बाधा बनेगा तो भविष्य पर गंभीर असर होगा।”
विशेषज्ञों की राय
वन्यजीव विशेषज्ञ मानते हैं कि इंसानों और जानवरों के बीच बढ़ते टकराव का मुख्य कारण वनों का सिकुड़ना और मानवीय गतिविधियों का वन्यजीव क्षेत्र में बढ़ना है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि दीर्घकालिक समाधान के लिए बेहतर वन प्रबंधन और ग्रामीणों की भागीदारी आवश्यक है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड में बच्चों का डंडे लेकर स्कूल जाना सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि एक गंभीर संदेश है। यह बताता है कि मानव-वन्यजीव संघर्ष अब शिक्षा जैसे बुनियादी अधिकार पर भी असर डाल रहा है।
जरूरत है कि प्रशासन, वन विभाग और समाज मिलकर ऐसे ठोस कदम उठाएं जिससे बच्चों का बचपन डर में न बीते और वे सुरक्षित माहौल में अपनी शिक्षा जारी रख सकें।