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उत्तराखंड: इस दिन तय होगी बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने की तारीख

देहरादून। उत्तराखंड के चार धामों में शामिल बदरीनाथ धाम में कपाट बंद होने की तिथि को लेकर श्रद्धालुओं की उत्सुकता चरम पर है। हर साल की तरह इस...

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ChaloPahad Team
September 29, 2025
Sep 29, 2025 | Uttarakhand News
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उत्तराखंड: इस दिन तय होगी बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने की तारीख

देहरादून। उत्तराखंड के चार धामों में शामिल बदरीनाथ धाम में कपाट बंद होने की तिथि को लेकर श्रद्धालुओं की उत्सुकता चरम पर है। हर साल की तरह इस बार भी विजयदशमी (दशहरे) के पावन पर्व पर कपाट बंद होने की तिथि का ऐलान परंपरा के अनुसार किया जाएगा। हजारों श्रद्धालु और तीर्थयात्री इस निर्णय पर निगाहें गड़ाए हुए हैं, क्योंकि इसके बाद ही वे अपनी यात्रा योजनाओं को अंतिम रूप दे पाएंगे।

परंपरा और धार्मिक महत्व

बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने और बंद करने की तिथियां सदियों पुरानी परंपरा के तहत तय होती हैं। कपाट बंद करने की घोषणा विजयदशमी के दिन नरसिंह मंदिर (जोशीमठ) में धार्मिक अनुष्ठान के बाद की जाती है। यह आयोजन केवल तिथि निर्धारण नहीं, बल्कि श्रद्धा और परंपरा का संगम होता है।

चारधाम यात्रा और इसका प्रभाव

चारधाम यात्रा उत्तराखंड की आर्थिकी और पर्यटन का आधार है। कपाट बंद होने का अर्थ है कि यात्रा सीजन भी अपने समापन की ओर है। पर्यटन विभाग के अनुसार, इस वर्ष अब तक लाखों श्रद्धालुओं ने बदरीनाथ धाम के दर्शन किए हैं। कपाट बंद होने की घोषणा के बाद तीर्थयात्रियों का अंतिम चरण शुरू हो जाता है, जब लोग शीतकालीन पूजा के लिए उमड़ते हैं।

स्थानीय समुदाय की भूमिका

स्थानीय व्यापारी और होटल व्यवसायी भी इस घोषणा पर ध्यान लगाए रहते हैं। कपाट बंद होने से क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। जोशीमठ के एक व्यापारी ने बताया, “हर साल कपाट बंद होने से पहले यात्रियों की संख्या अचानक बढ़ जाती है। यह हमारे व्यवसाय के लिए भी अहम समय होता है।”

आधिकारिक दृष्टिकोण

बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (BKTC) से जुड़े एक अधिकारी ने जानकारी दी कि, “कपाट बंद करने की तिथि का निर्धारण पारंपरिक विधि-विधान और पंचांग के अनुसार किया जाएगा। हम चाहते हैं कि श्रद्धालु पूरी तरह से सुरक्षित और सुचारू रूप से अपनी यात्रा पूरी करें।”

निष्कर्ष

बदरीनाथ धाम केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। कपाट बंद होने की घोषणा हर साल न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होती है। यह परंपरा हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आस्था और परंपरा किस तरह आज भी लोगों के जीवन और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को दिशा प्रदान करती है।

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