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उत्तराखंड : RSS के शताब्दी वर्ष पर गणवेशधारी स्वयंसेवकों का भव्य पथ संचलन

देहरादून। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के अवसर पर उत्तराखंड में रविवार को एक भव्य पथ संचलन का आयोजन किया गया। गणवेशधारी स्व...

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ChaloPahad Team
September 29, 2025
Sep 29, 2025 | Uttarakhand News
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उत्तराखंड : RSS के शताब्दी वर्ष पर गणवेशधारी स्वयंसेवकों का भव्य पथ संचलन

देहरादून। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के अवसर पर उत्तराखंड में रविवार को एक भव्य पथ संचलन का आयोजन किया गया। गणवेशधारी स्वयंसेवकों की अनुशासित टुकड़ियों ने शहर की मुख्य सड़कों पर कदमताल कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस कार्यक्रम को संघ की वैचारिक और संगठनात्मक शक्ति का प्रतीक माना जा रहा है।

शताब्दी वर्ष का ऐतिहासिक महत्व

RSS अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है। इस अवसर पर देशभर में विविध कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। उत्तराखंड में हुआ यह पथ संचलन उसी कड़ी का हिस्सा था। आयोजकों का कहना है कि इन आयोजनों का उद्देश्य संगठन की जड़ों को मजबूत करना और युवा पीढ़ी तक संघ की परंपरा और अनुशासन को पहुंचाना है।

अनुशासन और एकता का प्रदर्शन

पथ संचलन में शामिल स्वयंसेवकों ने सफेद शर्ट, खाकी पैंट और काली टोपी के साथ पारंपरिक गणवेश धारण किया। सड़कों पर उनकी सधी हुई चाल और सामूहिक स्वरूप ने अनुशासन और एकता का संदेश दिया। स्थानीय लोगों ने जगह-जगह पुष्पवर्षा कर स्वयंसेवकों का स्वागत किया।

प्रमुख हस्तियों की उपस्थिति

इस अवसर पर कई वरिष्ठ RSS पदाधिकारी और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि मौजूद रहे। एक पदाधिकारी ने कहा, “यह पथ संचलन केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि हमारे विचार और संस्कारों की झलक है। आने वाले वर्षों में संघ समाज में और अधिक सकारात्मक योगदान देगा।”

आलोचना और बहस

हालांकि, RSS के कार्यक्रम अक्सर राजनीतिक और सामाजिक बहस का हिस्सा बनते रहे हैं। कुछ आलोचकों का मानना है कि ऐसे आयोजनों का उद्देश्य सांस्कृतिक दिखावे से आगे जाकर राजनीतिक प्रभाव बढ़ाना भी होता है। वहीं, समर्थकों का कहना है कि संघ के कार्यक्रम समाज को अनुशासन, सेवा और राष्ट्रभक्ति की दिशा में प्रेरित करते हैं।

स्थानीय समाज पर प्रभाव

उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में संघ की पकड़ मजबूत मानी जाती है। शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा कार्यों के माध्यम से RSS ने यहां कई वर्षों से सक्रिय भूमिका निभाई है। यह भव्य पथ संचलन न केवल संगठन की शक्ति का प्रदर्शन था, बल्कि समाज के विभिन्न तबकों तक पहुंच बनाने का भी प्रयास था।

निष्कर्ष

RSS के शताब्दी वर्ष पर आयोजित यह पथ संचलन एक बार फिर इस बात को रेखांकित करता है कि संघ केवल एक संगठन नहीं, बल्कि विचारधारा और अनुशासन का प्रतीक है। फिर भी सवाल यह बना रहता है कि क्या ऐसे आयोजनों से समाज में समावेशी संवाद और पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा मिलेगा, या यह बहस को और गहरा करेगा?

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