देहरादून। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने छात्र राजनीति को लेकर एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ ऐसे लोग, जिन्ह...
देहरादून। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने छात्र राजनीति को लेकर एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ ऐसे लोग, जिन्हें लंबे समय तक राजनीति करने का अवसर नहीं मिला, अब छात्रों की आड़ लेकर राजनीति कर रहे हैं। धामी का यह बयान प्रदेश की मौजूदा छात्र राजनीति और उससे जुड़ी घटनाओं पर सीधा कटाक्ष माना जा रहा है।
छात्रों के भविष्य पर चिंता
मुख्यमंत्री ने कहा कि छात्र राजनीति को दिशा देने की जिम्मेदारी गंभीर है, लेकिन कुछ लोग इसे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं का माध्यम बना रहे हैं। उनका मानना है कि यह प्रवृत्ति छात्रों के भविष्य और शिक्षा व्यवस्था पर नकारात्मक असर डाल सकती है।
धामी ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “राजनीति करने का अवसर हर किसी को मिल सकता है, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ लोग छात्रों को मोहरा बना रहे हैं। यह प्रदेश के लिए सही संकेत नहीं है।”
हालिया घटनाओं से जुड़ा संकेत
धामी का बयान ऐसे समय आया है जब हाल ही में प्रदेश के कई कॉलेजों में छात्रसंघ चुनावों के दौरान तनाव और विवाद की घटनाएं सामने आईं। पुलिस बल की तैनाती और सुरक्षा के विशेष इंतजाम यह दर्शाते हैं कि छात्र राजनीति अब केवल कैंपस तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह प्रदेश की मुख्यधारा की राजनीति से गहराई से जुड़ गई है।
विपक्ष और आलोचकों की प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों और छात्र संगठनों ने सीएम धामी के बयान को राजनीतिक करार दिया है। उनका कहना है कि राज्य सरकार छात्रों की असली समस्याओं से ध्यान हटाने की कोशिश कर रही है। एक छात्र नेता ने कहा, “छात्रों की समस्याएं फीस, बेरोजगारी और पढ़ाई से जुड़ी हैं। अगर छात्र आंदोलन करते हैं तो उसे राजनीति करार देना गलत है।”
विश्लेषण : राजनीति और शिक्षा का टकराव
विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखंड में छात्र राजनीति लंबे समय से मुख्यधारा की राजनीति की नर्सरी रही है। कई बड़े नेता छात्रसंघ चुनावों से ही राजनीति में आए। ऐसे में छात्रों को पूरी तरह राजनीति से अलग कर पाना मुश्किल है। लेकिन सवाल यह है कि क्या आज की छात्र राजनीति शिक्षा और विकास के मुद्दों को पीछे छोड़ कर केवल सत्ता संघर्ष का साधन बन गई है?
निष्कर्ष
सीएम धामी के बयान ने प्रदेश की छात्र राजनीति पर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। एक तरफ सरकार का तर्क है कि छात्रों को भटकाया जा रहा है, वहीं विपक्ष और छात्र संगठन इसे अपनी आवाज़ दबाने की कोशिश बता रहे हैं। सवाल यह है कि उत्तराखंड का छात्र वर्ग कब अपनी असली ताकत—शिक्षा और सकारात्मक बदलाव—के लिए एकजुट होकर आगे बढ़ेगा?