हल्द्वानी – उत्तराखंड में एक अजीब और गंभीर मामला सामने आया है, जहां एक सर्वे कानूनगो पर घर से ही तहसील चलाने का आरोप लगा। मामले ने जैसे ही त...
हल्द्वानी – उत्तराखंड में एक अजीब और गंभीर मामला सामने आया है, जहां एक सर्वे कानूनगो पर घर से ही तहसील चलाने का आरोप लगा। मामले ने जैसे ही तूल पकड़ा, प्रशासन हरकत में आया और संबंधित अधिकारी को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। यह कार्रवाई राज्य सरकार की उन घोषणाओं के अनुरूप मानी जा रही है, जिसमें सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही को प्राथमिकता देने की बात कही गई है।
मामला कैसे खुला?
सूत्रों के अनुसार, कानूनगो लंबे समय से अपने घर से ही तहसील से जुड़े कार्य निपटा रहे थे। इसमें राजस्व संबंधी दस्तावेजों की जांच, रिपोर्ट तैयार करना और लोगों से मिलना जैसी गतिविधियां शामिल थीं। स्थानीय लोगों ने इसकी शिकायत प्रशासन तक पहुंचाई, जिसके बाद मामला खुला।
प्रशासन की त्वरित कार्रवाई
जैसे ही शिकायत की पुष्टि हुई, उच्च अधिकारियों ने तुरंत जांच करवाई। प्रारंभिक जांच में आरोप सही पाए गए और संबंधित कानूनगो को निलंबित करने का आदेश जारी कर दिया गया।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “यह व्यवहार सेवा नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है। जनता को कार्यालयों में सुविधा मिलनी चाहिए, न कि घर से चलने वाली फाइलों के जरिए।”
जनता की प्रतिक्रिया
स्थानीय नागरिकों ने इस कार्रवाई का स्वागत किया है। उनका कहना है कि ऐसे मामलों से सरकारी तंत्र पर लोगों का भरोसा टूटता है। एक निवासी ने कहा, “अगर अधिकारी घर से ही तहसील चलाएंगे तो आम जनता को परेशानियों का सामना करना ही पड़ेगा। सरकार का कदम सही है।”
पारदर्शिता और प्रशासनिक सुधार की चुनौती
यह घटना सवाल उठाती है कि सरकारी विभागों में निगरानी और जवाबदेही की व्यवस्था कितनी प्रभावी है। विशेषज्ञ मानते हैं कि केवल निलंबन ही पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि इस तरह के मामलों की रोकथाम के लिए ठोस तंत्र विकसित करना जरूरी है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड का यह मामला प्रशासनिक व्यवस्था में मौजूद खामियों की ओर इशारा करता है। सरकार की ओर से की गई त्वरित कार्रवाई सराहनीय है, लेकिन यह तभी कारगर साबित होगी जब ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए सख्त और स्थायी व्यवस्था की जाए। जनता को पारदर्शी और जवाबदेह शासन देने का वादा तभी पूरा होगा जब इस तरह की घटनाओं को जड़ से खत्म किया जाए।