देहरादून। उत्तराखंड से निकल रही एक सकारात्मक पहल ने पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों में नई उम्मीदें जगा दी हैं। अब राज्य के पूर्व सैनिकों को...
देहरादून। उत्तराखंड से निकल रही एक सकारात्मक पहल ने पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों में नई उम्मीदें जगा दी हैं। अब राज्य के पूर्व सैनिकों को न केवल उत्तराखंड में, बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी उपनल (Uttarakhand Purva Sainik Kalyan Nigam Ltd.) के माध्यम से रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। यह कदम पूर्व सैनिकों के सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
उपनल क्या है और क्यों अहम है?
उपनल, उत्तराखंड सरकार द्वारा संचालित एक संस्था है जो पूर्व सैनिकों, उनके आश्रितों और दिव्यांग सैनिकों को रोजगार दिलाने के उद्देश्य से बनाई गई थी। अब तक इसका कार्यक्षेत्र मुख्यतः राज्य तक सीमित था। लेकिन सरकार और संबंधित विभागों के प्रयासों से इसे अब पड़ोसी राज्यों तक भी विस्तारित किया जा रहा है।
रक्षा मामलों के जानकारों का कहना है कि यह कदम पूर्व सैनिकों के लिए “दूसरा मोर्चा” साबित होगा, जहां वे सेना से रिटायर होने के बाद भी समाज और राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सकेंगे।
किन राज्यों में मिलेंगे रोजगार?
सूत्रों के अनुसार, उपनल की सेवाओं को दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी शुरू करने की तैयारी है। इन राज्यों की सरकारों और सार्वजनिक उपक्रमों ने उत्तराखंड के इस मॉडल को अपनाने में दिलचस्पी दिखाई है।
उपनल के प्रबंध निदेशक ने कहा, “हमारा लक्ष्य है कि पूर्व सैनिकों की अनुशासन और कार्यकुशलता का लाभ अन्य राज्यों को भी मिले। इसके लिए कई कंपनियों और संस्थानों के साथ बातचीत अंतिम चरण में है।”
पूर्व सैनिकों और परिवारों के लिए राहत
रिटायर्ड सूबेदार मेजर देवेंद्र सिंह ने इस पहल पर खुशी जताते हुए कहा, “सेना छोड़ने के बाद सबसे बड़ी चुनौती रोजगार की होती है। उपनल की वजह से अब हमें न केवल अपने राज्य बल्कि अन्य जगहों पर भी अवसर मिलेंगे। यह कदम हमारे आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देगा।”
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे उन पूर्व सैनिकों की भी मदद होगी जो गांव या छोटे कस्बों में रहते हैं और रोजगार की सीमित संभावनाओं से जूझ रहे हैं।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
इस कदम से न केवल पूर्व सैनिकों को लाभ मिलेगा बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था और समाज को भी मजबूती मिलेगी। अनुशासित और प्रशिक्षित कार्यबल मिलने से कंपनियों और सरकारी संस्थानों को भी फायदा होगा।
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. सीमा रावत कहती हैं, “यह पहल न केवल रोजगार बल्कि समाज में सुरक्षा और विश्वास की भावना को भी मजबूत करेगी। पूर्व सैनिकों की भूमिका हमेशा से ही अनुकरणीय रही है, और अब वे सिविल जीवन में भी अपना योगदान बढ़ा पाएंगे।”
निष्कर्ष
उत्तराखंड सरकार और उपनल का यह कदम पूर्व सैनिकों के पुनर्वास की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। यह केवल रोजगार उपलब्ध कराने की योजना नहीं है, बल्कि उस त्याग और अनुशासन को सम्मान देने का प्रयास है जो सैनिक देश की सेवा के दौरान दिखाते हैं।
इस पहल से एक बड़ा संदेश जाता है, सैनिक केवल सीमा पर ही नहीं, बल्कि समाज और विकास के हर मोर्चे पर देश की शक्ति हैं।