उत्तराखंड की वादियों में पलकर बड़ी हुई एक साधारण लड़की आज प्रदेश की कला को देश ही नहीं, बल्कि विदेशों तक ले जाने का सपना देख रही है। पारंपरि...
उत्तराखंड की वादियों में पलकर बड़ी हुई एक साधारण लड़की आज प्रदेश की कला को देश ही नहीं, बल्कि विदेशों तक ले जाने का सपना देख रही है। पारंपरिक लोककला और हस्तशिल्प, जिन्हें अक्सर गांवों तक सीमित मान लिया जाता है, अब उसके प्रयासों से नए मंच पा रहे हैं।
कौन है ये युवा कलाकार?
देहरादून की रहने वाली 24 वर्षीय प्राची बिष्ट (काल्पनिक नाम) ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपना करियर महानगरों में बनाने के बजाय अपने राज्य की कला और संस्कृति को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। वह लकड़ी की नक्काशी, थापा पेंटिंग और उत्तराखंड की पारंपरिक बुनाई जैसे कामों को आधुनिक डिजाइन के साथ जोड़कर दुनिया के सामने पेश कर रही है।
अंतरराष्ट्रीय मंच तक सफर
प्राची का काम हाल ही में दुबई और सिंगापुर की कला प्रदर्शनियों में प्रदर्शित हुआ। वहां लोगों ने उत्तराखंड की पारंपरिक शैली को न सिर्फ सराहा, बल्कि खरीदने में भी दिलचस्पी दिखाई। “मेरा सपना है कि उत्तराखंड की कला को वैश्विक पहचान मिले और यहां के कलाकारों को भी उनका हक और सम्मान मिले,” प्राची कहती हैं।
स्थानीय कलाकारों के लिए उम्मीद
उनके इस प्रयास से गांवों में काम कर रहे छोटे-छोटे कारीगरों को भी फायदा हो रहा है। प्राची स्थानीय कलाकारों को जोड़कर उनके उत्पादों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बेच रही हैं। इससे उन्हें आर्थिक सहारा तो मिल ही रहा है, साथ ही युवा पीढ़ी भी पारंपरिक कला सीखने के लिए प्रेरित हो रही है।
विशेषज्ञों की राय
संस्कृति विभाग के एक अधिकारी ने कहा, “आज के दौर में जब युवा पारंपरिक कला से दूर जा रहे हैं, ऐसे प्रयास न सिर्फ राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को बचाएंगे बल्कि नई पीढ़ी को भी इससे जोड़ेंगे।”
निष्कर्ष
उत्तराखंड की ये बेटी साबित कर रही है कि सपने सिर्फ देखे ही नहीं जाते, बल्कि पूरे भी किए जा सकते हैं। उसकी कोशिशें यह बताती हैं कि अगर जुनून और संकल्प हो तो प्रदेश की कला और संस्कृति सीमाओं से परे जाकर भी अपनी पहचान बना सकती है। सवाल यह है कि क्या सरकार और समाज ऐसे प्रयासों को और मजबूती देंगे?