देहरादून, 25 सितंबर – उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का एक युवक पिछले सात सालों से सऊदी अरब में फंसा हुआ है। परिवारजन उसकी सलामती और घर वापसी क...
देहरादून, 25 सितंबर – उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का एक युवक पिछले सात सालों से सऊदी अरब में फंसा हुआ है। परिवारजन उसकी सलामती और घर वापसी के लिए गुहार लगा रहे हैं। यह मामला प्रवासी मजदूरों की मुश्किलों और मजबूत सहयोग तंत्र की आवश्यकता को उजागर करता है।
परिवार की गुहार
उत्तरकाशी निवासी यह युवक बेहतर रोजगार अवसरों की तलाश में सऊदी अरब गया था। लेकिन हालात ऐसे बने कि वह पिछले सात वर्षों से घर नहीं लौट पाया है। उसका परिवार आर्थिक और भावनात्मक दोनों तरह की मुश्किलों से जूझ रहा है और अब राज्य सरकार व विदेश मंत्रालय से त्वरित हस्तक्षेप की अपील कर रहा है।
“हम हर दिन उसका इंतज़ार करते हैं। यह इंतज़ार बहुत भारी पड़ रहा है। हमें बस अपना बेटा वापस चाहिए,” परिजन ने रोते हुए कहा।
प्रवासी मजदूरों की बड़ी तस्वीर
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, खाड़ी देशों में लाखों भारतीय काम कर रहे हैं, जिनमें बड़ी संख्या उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड जैसे राज्यों से जाती है। अधिकांश को काम मिल जाता है, लेकिन कई बार मजदूर शोषणकारी अनुबंधों, बकाया वेतन या कानूनी पेचिदगियों में फंस जाते हैं और घर लौटना मुश्किल हो जाता है।
“ऐसे मामले अकेले नहीं हैं। प्रवासी मजदूर अक्सर कानूनी और प्रशासनिक जाल में फंस जाते हैं, जिससे उनकी वापसी बिना राजनयिक हस्तक्षेप के लगभग असंभव हो जाती है,” देहरादून स्थित प्रवासन विशेषज्ञ प्रो. अनिल जोशी ने बताया।
सरकारी कार्रवाई की मांग
उत्तराखंड के स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सामुदायिक नेताओं ने इस मामले में तुरंत कार्रवाई की मांग की है। परिवार ने जिला प्रशासन को लिखित अपील सौंपी है और उम्मीद कर रहा है कि यह मामला रियाद स्थित भारतीय दूतावास तक पहुंचेगा।
उत्तरकाशी जिला प्रशासन के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, “हमें अपील प्राप्त हुई है। हम केस का विवरण विदेश मंत्रालय को भेजने की प्रक्रिया में हैं। ऐसे मामलों में भारतीय मिशनों से समन्वय जरूरी होता है।”
राजनयिक और मानवीय चुनौतियाँ
फंसे हुए नागरिकों की वापसी अक्सर जटिल कानूनी ढाँचों से जुड़ी होती है, खासकर खाड़ी देशों में जहां निकास परमिट, प्रायोजक नियम और नियोक्ता-कर्मचारी अनुबंध बड़ी भूमिका निभाते हैं।
“भारत के राजनयिक मिशन लगातार stranded नागरिकों को वापस लाने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन हर मामला अलग होता है और उसमें कानूनी पेचिदगियाँ होती हैं, जिन्हें सुलझाने में समय लगता है,” विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नई दिल्ली से कहा।
आगे की राह
उत्तरकाशी के परिवार के लिए हर गुजरता दिन अनिश्चितता को और गहरा कर रहा है। हालांकि आधिकारिक प्रक्रियाएँ जारी हैं, उनकी उम्मीदें केवल भारतीय अधिकारियों की त्वरित कार्रवाई और सऊदी प्रशासन के सहयोग पर टिकी हैं।
भारत जैसे-जैसे अपने श्रमिकों की संख्या विदेशों में बढ़ा रहा है, यह घटना प्रवासी मजदूरों की कमजोरियों की ओर ध्यान खींचती है। उत्तरकाशी के युवक की यह स्थिति इस बात पर गंभीर सवाल खड़े करती है कि विदेशों में काम करने वाले भारतीयों के लिए सुरक्षा, निगरानी और कानूनी मदद के तंत्र कितने मजबूत हैं।
निष्कर्ष
फंसे हुए युवक की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं है, बल्कि यह उन तमाम प्रवासी मजदूरों की झलक है जिनकी आवाज़ अक्सर अनसुनी रह जाती है। उसके परिवार की गुहार नीति-निर्माताओं को मजबूर करती है कि वे सुरक्षा ढाँचे को और मजबूत करें ताकि विदेश में काम करने का सपना किसी के लिए वर्षों का दुःस्वप्न न बन जाए।